
माँ — यह केवल एक शब्द नहीं, एक संपूर्ण भावना है। माँ का स्नेह, देखभाल और सुरक्षा हमें जन्म से पहले ही मिलने लगती है। ठीक वैसे ही जैसे आयुर्वेद, जो जीवन के हर पहलू की रक्षा करता है — गर्भधारण से लेकर वृद्धावस्था तक।
मातृ दिवस केवल एक दिन नहीं, बल्कि उस निस्वार्थ प्रेम, त्याग और संरक्षण को सम्मान देने का अवसर है जो एक माँ जीवनभर देती है।
और यदि देखा जाए, तो माँ स्वयं आयुर्वेद की जीती-जागती मूर्ति है।
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माँ और आयुर्वेद में अद्भुत समानता:
1. पालन-पोषण में पंचमहाभूतों का संतुलन:
माँ का स्नेह वात को शांत करता है, उसका पोषण पित्त को संतुलित करता है और उसका आलिंगन कफ को स्थिर करता है।
2. गर्भधारण से शिशु संवर्धन तक:
आयुर्वेद में गर्भिणी परिचर्या (गर्भवती माँ की देखभाल) विशेष महत्व रखती है। यह न केवल शिशु के स्वास्थ्य के लिए, बल्कि माँ के मानसिक व शारीरिक संतुलन हेतु भी आवश्यक है।
3. माँ के नुस्खे = घर का आयुर्वेद:
हल्दी वाला दूध, अजवायन का काढ़ा, तुलसी का अर्क, चंदन का लेप – ये सब एक माँ की पारंपरिक चिकित्सा का हिस्सा होते हैं, जो आयुर्वेद की जड़ों से ही जुड़ा है।
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आधुनिक माताएँ और आयुर्वेद
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में माँओं के लिए खुद की देखभाल करना आवश्यक है।
शतावरी, अशोक, लोध्र जैसी औषधियाँ महिलाओं के हार्मोन संतुलन व शक्ति के लिए अत्यंत लाभकारी हैं।
नियमित अभ्यंग (तेल मालिश), योग, और सत्ववर्धक आहार उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है।
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मातृ दिवस पर एक संकल्प:
इस मातृ दिवस पर आइए संकल्प लें:
माँ को आयुर्वेदिक जीवनशैली की ओर ले जाएं।
उन्हें हर दिन विश्राम, पोषण और प्रेम दें – जैसा उन्होंने हमें दिया है।
और सबसे जरूरी – उन्हें यह अहसास कराएं कि वो हमारे लिए सिर्फ माँ नहीं, हमारे जीवन की प्राकृतिक चिकित्सा हैं।
माँ और आयुर्वेद – दोनों ही बिना शर्त प्रेम, सुरक्षा और जीवन की संजीवनी हैं।
इस मातृ दिवस पर आयुर्वेद से जुड़ें, माँ के स्वास्थ्य को नमन करें।
जय आयुर्वेद 🌿
साभार
डॉ अनुभव जिंदल
